भारतीय आयु के विज्ञान आयुर्वेद में नाडी द्वारा रोग परीक्षण अत्यंत प्राचीन और चमत्कार पूर्ण तथ्य है। बिना रोगी के बताए ही कुशल वैघ द्वारा शरीर में होने वाले रोग रूपी हलचल तकलीफों लक्षणों का ज्ञान प्राप्त करने का रहस्यमई वैदिक विज्ञान है।
आयुर्वेद का त्रिदोष सिद्धांत यानी वात पित्त कफ पर आधारित नाड़ी विज्ञान के गुढ रहस्य इस विज्ञान के युग में भी रोग और रोगी की हालात समझने मे और इलाज समाधान देने में बेहद कारगर सफल एवं सुखद उपयोग है।
नाडी के माध्यम से नाड़ी वैद्य आपकी शरीर की हालात को बयान करने में सक्षम और रोग को ठीक करने में सिद्धांत के अनुसार प्राकृतिक तरीके से बिना किसी दुष्प्रभाव शरीर को स्वास्थ्य लाभ देने में बेहद मददगार होते हैं।
तो आइए जानते हैं नाड़ी क्या है
मनुष्य का शरीर में बहुत सारी नाड़ियों का जाल है। जो शरीर की पोषण प्रवाह और सूचना प्रवाह को नियमित करती हैं।कुछ नारियां खून के प्रवाह से संबंध रखती हैं और कुछ करंट के प्रवाह से संबंध रखती हैं। अक्सर नसों के बारे में भ्रामक स्थिति रहती है रोगी व्यक्ति अक्सर कहते हैं नसों में ब्लॉकेज और दौरा सही नहीं हो रहा है। यहां हम दोनों स्थिति को स्पष्ट किया है। अब हम खून के प्रवाह से संबंध रखने वाली नाड़ी की चर्चा करेंगे। उसमें से भी खास जो धमनी यानी हृदय से अंगों की तरफ खून का प्रवाह कर पोषण में मदद करती है। और जीवन के साक्ष्य और प्रमाण को प्रस्तुत करती है। उसी का नाम है जीवन साक्षी नाड़ी।
वैद्यो द्वारा नाड़ी परीक्षण आठ स्थान पर देखने का शास्त्र प्रमाण मिलता है। जिसमें व्यवहार में सबसे अधिक और सबसे आसान हाथ की नारी कलाई के पास की नाड़ी देखी जाती है। इस नारी को ब्रेकियल आर्टरी का रेडियल भाग है। जो अंगूठी के मूल से लगभग डेढ़ इंच छोड़कर देखी जाती है।
नारी के माध्यम से वात पित्त कफ की स्थिति वर्तमान में कौन सा दोष आपके शरीर में इन बैलेंस होकर दुख का कारण है इतना ही नहीं अंगों की एनर्जी फंक्शनैलिटी को ही बताता है।
रोग शरीर में किस टिशूज में है किस आर्गन में है उसका भी ज्ञान कराता है।
आप यूं ही समझ सकते हैं कि आपके शरीर के अंदर होने वाले सभी प्रकार के अनियमितताएं विषमताएं और तकलीफों का बिना कष्ट बिना लंबी जांच प्रक्रिया और बिना ज्यादा पैसा लगाए डायग्नोसिस में निदान में बहुत बड़ी भूमिका है।
जैसे स्वस्थ रहने के लिए स्वस्थ दिखने के लिए पैथोलॉजी की जांच कराते हैं उसी प्रकार नाड़ी वैद्य द्वारा भी अपने शरीर के अंगों की फिजियो पैथोलॉजिकल विकृति होने से पहले ही जान कर समझ कर खानपान में सुधार कर जीवन को स्वस्थ एवं मंगलमय बनाएं। यही है भारतीय आयुर्वेद विज्ञान की ज्ञान की सही उपयोगिता।
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